नई दिल्ली
सरकारी कर्मचारियों को यूनिफाइड पेंशन स्कीम का तोहफा देने के बाद मोदी सरकार अग्निपथ योजना में भी बड़ा बदलाव करेगी? ये सवाल आजकल हर किसी के मन में चल रहा है। वहीं पिछले कुछ वक्त से अग्निपथ योजना को लेकर सियासी तापमान भी हाई है। इस बीच अग्रिनपथ योजना को लेकर टॉप अधिकारी ने एक बड़ी जानकारी साझा की है। अग्निपथ भर्ती मॉडल में किसी तरह का कोई बदलाव नहीं होने जा रहा है। अधिकारियों के मुताबिक, अगर इस योजना में किसी तरह के बदलाव किए जाएंगे तब इसे लागू करने का मकसद कामयाब नहीं हो पाएगा। एक अधिकारी के हवाले से बताया है कि अगर अग्निपथ योजना में किसी तरह का बदलाव होता तो इससे भारत के सुरक्षा हितों को खतरा हो सकता है।
हरियाणा, महाराष्ट्र, जम्मू-कश्मीर और झारखंड विधानसभा चुनावों में अग्निपथ स्कीम चुनावी मुद्दा बन सकती है। सेना का यह भर्ती मॉडल शुरू से ही चर्चा में रहा है। इसके तहत युवाओं को कुछ सालों के लिए सेना में भर्ती किया जाता है। इस स्कीम को दो साल पहले सशस्त्र बलों को युवा और युद्ध के लिए तैयार रखने के मकसद से पेश किया गया था। सरकार के टॉप अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, ‘यह योजना चीन का मुकाबला करने की हमारी रणनीति के तहत है। सेना को विवादित सीमा के दुर्गम पहाड़ों में लड़ने के लिए युवाओं की जरूरत है।’
गलवान घाटी में हुई झड़प से क्या कनेक्शन?
अधिकारी ने 2020 में गलवान घाटी में हुई झड़प का उदाहरण देते हुए कहा कि इस घटना ने साबित कर दिया कि ऊंचाई वाले क्षेत्रों में दुश्मन से लोहा लेने के लिए कितनी कठिनाई होती है। उस समय भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच पत्थरों, डंडों और नुकीले तारों से जख्मी लड़ाई हुई थी। अधिकारी ने बताया कि हमारे पैदल सेना के सैनिकों की औसत आयु 29 है, लेकिन उन्हें 21 के करीब होने की आवश्यकता है। दरअसल अग्निपथ स्कीम के तहत केवल 17 से 21 वर्ष की आयु के युवा पुरुष और महिलाएं सेना में भर्ती होने के योग्य हैं। अग्निपथ के तहत चुने गए सैनिकों में से 25% को अगले 15 साल तक नियमित सेवा में बनाए रखने का प्रावधान है।
क्या है अग्निपथ योजना?
भारत सरकार ने अपनी सेना को युवा और चुस्त-दुरुस्त बनाने के लिए ‘अग्निपथ योजना’ की शुरुआत की। इस योजना के तहत, युवाओं को चार साल के लिए सेना में भर्ती किया जाता है, जिसके बाद उनमें से 25% को स्थायी सेवा में जाता है। इस योजना का मुख्य उद्देश्य सेना की औसत आयु को कम करना और उसे चीन जैसी चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार रखना है।